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Arthur Schopenhauer: इंसान की खुशहाली के दो दुश्मन हैं आलस्य और बोरियत

 इंसान की खुशहाली के दो दुश्मन हैं आलस्य और बोरियत

जर्मनी के प्रसिद्ध दार्शनिक शोपेन हावनर 'नास्तिक निराशावाद' दर्शन के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका जोर इस बात पर रहा कि केवल तर्क ही रहस्यों से परदा उठा सकता है।

Arthur Schopenhauer

German philosopher

आर्थर शोपेनहावर का जन्म 22 फरवरी 1788 को हुआ।

उनके जीवन के विचार - ->

इंसान तभी तक आजाद रहता है जब तक अकेला होता है, आत्मनिर्भर होता है। अगर उसे एकांत पसंद नहीं है तो इसका मतलब है उसे आजादी पसंद नहीं है।


प्रतिभाशाली व्यक्ति उस लक्ष्य को पा लेता है जो कोई और हासिल नहीं कर पाता। जबकि विलक्षण आदमी यह लक्ष्य हासिल कर लेता है, जिसके बारे में कोई और सोच भी नहीं सकता।


सीमित क्षमताओं वाले व्यक्ति के लिए विनम्रता ही ईमानदारी है। लेकिन जो लोग महान प्रतिभाशाली होते हैं उनके लिए यह सिर्फ पाखंड है।


शहीद होना ही एक तरीका है, जिसके जरिए इंसान बिना किसी प्रतिभा के भी प्रसिद्ध हो सकता है।


क्रिया में सबसे बड़ा गुण है साफ दिल और काम में सबसे बड़ा गुण होता है शानदार दिमाग।


हर सच्चाई को तीन चरणों से गुजरना होता है। पहला उसकी हंसी उड़ाई जाती है। दूसरा हिंसक विरोध। और तीसरा बिना किसी तर्क के स्वीकार कर लेना।


डॉक्टर इंसान की कमजोरियां देखता है। वकील उसकी दुष्टता देखता है और धर्मशास्त्री उसकी सारी मूर्खताएं देखता है।


संपत्ति समुद्र के पानी की तरह होती है, जितना हम इसे पीते हैं उतनी प्यास बढ़ती जाती है, यही बात प्रतिष्ठा पर भी लागू होती है।


इंसान हर वो काम कर सकता है जो वो चाहता है, लेकिन वो क्या चाहता है यह नहीं जानता।


दर्द से मुक्ति पाना हो दूर रहना हो तो खुशी का भी बलिदान देना होता है।


अगर हमारी खुद में ही बहुत दिलचस्पी नहीं होगी तो जीवन नीरस हो जाएगा और हममें से कोई भी इसे सहन नहीं कर पाएगा।


आदमी के शब्द ही दुनिया की सबसे टिकाऊ चीज हो जाएगी।