रक्षाबंधन का इतिहास और पौराणिक महत्व
रक्षाबंधन का इतिहास और महत्व भारतीय संस्कृति की गहरी जड़ों में छिपा हुआ है। प्राचीन काल से ही यह त्योहार भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत बनाने का माध्यम रहा है। कई पौराणिक कथाएं और ऐतिहासिक घटनाएँ इस पर्व से जुड़ी हैं, जो इसके गहरे भावार्थ को समझाती हैं।
रक्षाबंधन का त्योहार भगवान कृष्ण और द्रौपदी की कहानी से जुड़ा है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान कृष्ण युद्ध में घायल हो गए थे और उनकी उंगली से खून बह रहा था। द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर कृष्ण की उंगली पर बांध दिया, जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। कृष्ण ने द्रौपदी को अपनी बहन माना और वचन दिया कि वे हमेशा उनकी रक्षा करेंगे। वर्षों बाद, जब द्रौपदी को जुए में हारने के बाद भरी सभा में अपमानित किया जा रहा था, तो कृष्ण ने अपनी बहन की लाज बचाई और उसकी रक्षा की।
यह घटना श्रावण मास की पूर्णिमा को हुई थी, इसलिए इस दिन रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं, जो प्रेम, सुरक्षा और भाई-बहन के अटूट बंधन का प्रतीक है।
1. इंद्र और इंद्राणी (शची) की कथा रक्षाबंधन से जुड़ी है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार देवताओं और असुरों के बीच युद्ध में, देवराज इंद्र हारने वाले थे। तब इंद्राणी ने भगवान विष्णु से मदद मांगी और उन्होंने इंद्राणी को एक पवित्र धागा दिया, जिसे इंद्राणी ने इंद्र की कलाई पर बांधा। इस धागे की शक्ति से इंद्र ने असुरों को हरा दिया। इसी घटना के बाद से रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाने लगा, जिसमें बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनकी सलामती की दुआ करती हैं।
2. रानी कर्णावती और मुहम्मद बेग़रा
इतिहास में भी रक्षाबंधन की महत्ता दिखाई देती है। 16वीं सदी में मालवा की रानी कर्णावती ने मुग़ल सम्राट बहादुर शाह की सहायता के लिए राखी भेजी। उन्होंने इस राखी के माध्यम से भाईचारे और सुरक्षा का बंधन बनाया, जिसके कारण बहादुर शाह ने उनकी मदद की। यह घटना दर्शाती है कि रक्षाबंधन सिर्फ परिवार के भीतर नहीं बल्कि समाज और राजनैतिक संबंधों में भी एक अहम भूमिका निभाता है।
3. इसके अतिरिक्त, रक्षाबंधन से जुड़ी एक और कहानी है जिसमें चित्तौड़ की रानी कर्मवती ने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजी थी और उनसे अपनी और अपनी प्रजा की रक्षा करने का अनुरोध किया था। हुमायूँ ने राखी का मान रखा और रानी की रक्षा के लिए अपनी सेना भेजी, जिससे राखी का सम्मान और भाई-बहन के प्रेम का एक और उदाहरण स्थापित हुआ।
रक्षाबंधन की परंपरा और रीति-रिवाज
रक्षाबंधन के दिन बहनें सुबह-सुबह स्नान करके पूजा करती हैं। वे अपनी बहनों की कलाई पर रंग-बिरंगी राखियाँ बांधती हैं, जो कि एक मजबूत प्रतीक है प्रेम और सुरक्षा का। राखी बांधते समय बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र, सुख-शांति और समृद्धि की कामना करती हैं। इसके बाद भाई बहन को तोहफे देते हैं और उनकी रक्षा का वचन देते हैं।
यह त्योहार भारत के हर क्षेत्र में बड़े प्रेम से मनाया जाता है। अलग-अलग राज्यों में राखी के साथ-साथ मिठाइयां बाँटी जाती हैं और विशेष पकवान बनाए जाते हैं। इसका सामाजिक और पारिवारिक महत्व बहुत बड़ा है।
रक्षाबंधन का सामाजिक और आध्यात्मिक संदेश
रक्षाबंधन केवल एक पारंपरिक पर्व नहीं है, बल्कि यह समाज में भाईचारे, प्रेम और आपसी सम्मान का संदेश फैलाता है। यह त्योहार परिवार के रिश्तों को मजबूत करता है और एक-दूसरे के प्रति जिम्मेदारी की भावना को जगाता है। भाई-बहन का रिश्ता केवल खून का बंधन नहीं बल्कि विश्वास, सुरक्षा और समर्पण का भी बंधन है।
इस दिन की सबसे बड़ी शिक्षा है कि हम सभी को एक-दूसरे की रक्षा करनी चाहिए, चाहे वे हमारे परिवार हों या समाज के अन्य सदस्य। रक्षाबंधन हमें एकता, प्रेम और सद्भाव का महत्व समझाता है।
रक्षाबंधन एक ऐसा त्योहार है जो हमारे दिलों में प्रेम, सुरक्षा और सम्मान की भावना को जागृत करता है। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि परिवार ही हमारा पहला और सबसे मजबूत सहारा होता है। बहन का रक्षा सूत्र और भाई का सुरक्षा का वचन इस पर्व को एक अमूल्य और भावपूर्ण त्योहार बनाते हैं।
रक्षाबंधन केवल एक दिन नहीं, बल्कि एक ऐसा जीवन दर्शन है जो प्रेम और सुरक्षा के बंधन को सदैव जीवित रखता है।
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